नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने कहा कि भारत 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था का आकार आसानी से दोगुना कर सकता है. ‘पब्लिक अफेयर्स फोरम ऑफ इंडिया’ (पीएएफआई) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सुब्रह्मण्यम ने कहा कि जलवायु परिवर्तन भारत के लिए जलवायु प्रौद्योगिकी में अग्रणी बनने का एक अवसर है.
उन्होंने कहा, ‘हमारी अर्थव्यवस्था 2030 तक आसानी से दोगुनी हो जाएगी… 2026-2027 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की भारत की महत्वाकांक्षा के लिए एक सुसंगत व्यापक रणनीति की आवश्यकता है.’ अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में वर्तमान में भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसका आकार करीब 3,700 अरब अमेरिकी डॉलर है.
उन्होंने कहा कि भारत एक बड़ा प्रभावशाली खिलाड़ी होगा. पहले ही उसका काफी महत्व है और 2047 तक वैश्विक मामलों में इसका और भी अधिक महत्व होगा. सुब्रह्मण्यम ने कहा कि 2047 तक भारत जनसांख्यिकी दृष्टि से दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक होगा. वह समृद्धि की ओर अग्रसर होगा तथा अनुमानित प्रति व्यक्ति आय करीब 18,000 से 20,000 अमेरिकी डॉलर होगी.
उन्होंने कहा कि यह वृद्धि महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत के एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरने की उम्मीद है, जो पिछले दशक में प्राकृतिक आपदाओं तथा गरीबी जैसी चुनौतियों से निपटने में की गई पर्याप्त प्रगति पर आधारित है. इसके अलावा, उन्होंने कहा कि हरित अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने की आवश्यकता है और आयोग 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लिए एक मार्ग विकसित करने पर काम कर रहा है.
सुब्रह्मण्यम ने कहा, ‘हमने एक कार्यबल का गठन किया है और अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.’ नीति आयोग के सीईओ ने वैश्विक मूल्य श्रृंखला (जीवीसी) के महत्व को भी रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि सरकार बेहतर रणनीति बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों और सेवाओं पर काम कर रही है.
सुब्रह्मण्यम ने कहा कि शहरी विकास तथा बुनियादी ढांचा महत्वपूर्ण है. शहरों के विकास को गति देने के लिए आर्थिक केंद्र के रूप में तैयार किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र को नवाचार तथा निवेश में अग्रणी होना चाहिए. उसे ऐसे अनुकूल वातावरण का समर्थन प्राप्त होना चाहिए जो पोर्टफोलियो और प्रत्यक्ष दोनों प्रकार के निवेश को आकर्षित कर सके. नीति आयोग के सीईओ ने साथ ही कहा कि वैश्वीकरण के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं में सुधार आवश्यक है.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अंततः राज्य स्तर पर सुधार तथा सहकारी संघवाद के प्रति प्रतिबद्धता से समावेशी विकास सुनिश्चित होगा, जिससे भारत एक वैश्विक दिग्गज के रूप में उभरेगा और समृद्ध भविष्य की ओर अग्रसर होगा.
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