भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय बैंक ने स्वर्ण आभूषणों के बदले ऋण देने के दिशानिर्देशों की समीक्षा करने का प्रस्ताव किया है. सोने के आभूषणों को गिरवी रखकर विनियमित इकाइयों (बैंक और एनबीएफसी) द्वारा उपभोग और आय-सृजन दोनों उद्देश्यों के लिए कर्ज दिया जाता है.
इन प्रकार के ऋण के लिए विवेकपूर्ण और आचरण संबंधी विनियम समय-समय पर जारी किए गए हैं और वे आरई की विभिन्न श्रेणियों के लिए भिन्न-भिन्न हैं.
गवर्नर मल्होत्रा ने कहा, “सभी विनियमित इकाइयों में ऐसे विनियमनों को सुसंगत बनाने के उद्देश्य से, उनकी जोखिम लेने की क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए, तथा कुछ चिंताओं को दूर करने के लिए, ऐसे ऋण के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों और आचरण संबंधी पहलुओं पर व्यापक विनियमन जारी करने का निर्णय लिया गया है.” इस संबंध में दिशानिर्देशों का मसौदा सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए जारी किया जाएगा.
रिजर्व बैंक ने निरंतर नवोन्मेषण को बढ़ावा देने और तेजी से विकसित हो रहे फिनटेक (वित्तीय प्रौद्योगिकी)/नियामकीय परिदृश्य के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए नियामकीय सैंडबॉक्स (आरएस) ढांचे को ‘थीम न्यूट्रल’ और सदा सुलभ बनाने का भी प्रस्ताव दिया है.
आरबीआई 2019 से नियामकीय सैंडबॉक्स ढांचे का संचालन कर रहा है, और अब तक चार विशिष्ट विषयगत समूहों की घोषणा की गई है और उन्हें पूरा किया गया है. सदा सुलभ आवेदन सुविधा की घोषणा अक्टूबर, 2021 में की गई थी.
अक्टूबर, 2023 में आवेदन प्राप्त करने के लिए निर्दिष्ट समय अवधि के साथ पांचवें ‘थीम न्यूट्रल’ समूह की भी घोषणा की गई, जो मई, 2025 में बंद हो जाएगा. इस समूह के तहत, आरबीआई के नियामकीय दायरे में किसी भी पात्र अभिनव उत्पाद या समाधान का परीक्षण किया जा सकता है.
मल्होत्रा ने कहा, “अनुभव और हितधारकों से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर, अब नियामक सैंडबॉक्स को ‘थीम न्यूट्रल’ और ‘सदा सुलभ’ बनाने का प्रस्ताव है.”
केंद्रीय बैंक दबाव वाली परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण के लिए एक रूपरेखा का मसौदा भी जारी करेगा. प्रस्तावित रूपरेखा का उद्देश्य ‘सरफेसी अधिनियम, 2002’ के तहत मौजूदा एआरसी (संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी) उपाय के अलावा, बाजार आधारित तंत्र के माध्यम से ऐसी परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण को सक्षम करना है.
गवर्नर ने सह-कर्ज के दायरे का विस्तार करने और विनियमित संस्थाओं के बीच सभी प्रकार की सह-कर्ज व्यवस्थाओं के लिए एक सामान्य नियामकीय ढांचा जारी करने के निर्णय की भी घोषणा की. सह-कर्ज पर मौजूदा दिशानिर्देश केवल प्राथमिकता क्षेत्र के ऋणों के लिए बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के बीच व्यवस्थाओं पर लागू होते हैं.
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