लोगों को लगता है कि महिलाएं केवल घर के चूल्हे तक ही सीमित रह सकती हैं. उनके लिए सबसे बेहतर काम केवल खाना बनाना ही है. लेकिन ऐसी बात नहीं है. आज देश में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं. आज हम एक ऐसी ही महिला के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो अपनी मेहन से लाखों रुपये का महीना कमा रही हैं. खास बात यह है कि ये ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं हैं, लेकिन अपने कौशल के बदौलत कईयों को रोजगार दे रखा है. उनकी उद्यमशीलता के चलते उनकी चर्चा केवल जिले में नहीं, बल्कि पूरे राज्य में हो रही है.
दरअसल, हम जिस उद्यमी महिला के बारे में बात करने जा रहे हैं, उनका नाम मंगलम्मा है. ये कर्नाटक के मांड्या जिला स्थित डिंका गांव की रहने वाली है. यह गांव बेंगलुरु से 150 किलोमीटर दूर है. 47 वर्षीय मंगलम्मा एक डेयरी किसान हैं, जिनके पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं है. लेकिन उन्होंने इसे अपना कमजोरी नहीं बनने दिया. अपनी मेहनत के बदौलत एक सफल डेयरी उद्यमी बन गई हैं. मंगलम्मा ने पिछले साल गाय का दूध बेचकर 30 लाख रुपये कमाए.
कल ही मिला यह सम्मान
द टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, इंडियन डेयरी एसोसिएशन (दक्षिण क्षेत्र) द्वारा आयोजित दक्षिणी डेयरी शिखर सम्मेलन-2025 में ‘कर्नाटक की सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान’ के रूप में मंगलम्मा को सम्मानित किया गया. पिछले साल मंगलम्मा ने अपनी 30 गायों और दो भैंसों के झुंड से 1 लाख लीटर दूध का उत्पादन किया, जिससे वह अपने गांव में एक आदर्श बन गई हैं. उनका कहना है कि करीब दो दशक पहले, मेरे पति और मैंने डेयरी व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया. हमने शोध किया, सेमिनार में भाग लिया और बेहतर उत्पादन के लिए वैज्ञानिक प्रबंधन सीखा.
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रोज बेचती हैं 300 लीटर दूध
मंगलम्मा ने कहा कि शुरू में बहुत छोटे स्तर पर पशुपालन शुरू किया था. लेकिन धीरे-धीरे आमदनी बढ़ने पर दुधारू पशुओं की संख्या बढ़ती गई. आज इनके पास 50 से अधिक दुधारू मवेशी हैं. खास बात यह है कि इनके डेयरी में सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं. मवेशियों का दूध हाथ से नहीं, बल्कि मशीन से निकाले जाते हैं. उनकी गौशाला से रोज 300 लीटर दूध का उत्पादन होता है. खास बात यह है कि उनके इस बिजनेस में उनका बेटा भी हाथ बटाता है. मंगलम्मा के इस बिजनेस से गांव के 3 परिवारों के घर का चूल्हा जल रहा है.
मवेशियों को क्या खिलाती हैं
मंगलम्मा के डेयरी में दुधारू मवेशियों को हरी घास के अलावा अनाज भी खिलाया जाता है, जिसमें मक्का और नंदिनी के पूरक शामिल है. वह स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री जैसे कडले (मूंगफली) और ज्वार के चारे का भी उपयोग करती हैं. यह संयोजन सुनिश्चित करता है कि गायें स्वस्थ रहें और वे अच्छी गुणवत्ता वाला दूध दें. उन्होंने कहा कि अब वह अपने व्यवसाय का विस्तार करने की योजना बना रही हैं.
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Published: January 12, 2025, 17:55 IST