रिजर्व बैंक ने पिछले महीने ही देश के तमाम बैंकिंग, गैर-बैंकिंग और सूक्ष्म ऋण संस्थानों को चेतावनी दी थी कि बिना किसी जमानत के दिया गया 10 से 50 हजार रुपये का छोटा कर्ज व्यापक स्तर पर डूबने की आशंकाएं हैं. रिजर्व बैंक ने खासतौर पर बिहार और उत्तर प्रदेश में ऐसे छोटे कर्जदाताओं को कर्ज बांटने की गति धीमी करने की सलाह भी दी थी. रिजर्व बैंक की चेतावनी अब सच साबित हो रही है. इंडिया रेटिंग्स की रिपोर्ट में सामने आया है कि देश के तमाम माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन (MFI) के लिए फंसा हुआ कर्ज गले की फांस बन रहा है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि माइक्रो फाइनेंस क्षेत्र गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है. बड़ी तादाद में कर्जदार समय पर किस्तें नहीं चुका पा रहे हैं. इसकी वजह से कर्जदाता नए कर्ज धीमी गति से बांटने को मजबूर हो गए हैं. नतीजतन, चालू वित्तवर्ष की पहली तिमाही में नए कर्ज के वितरण में 24 फीसदी की गिरावट आई है, जबकि पिछली तिमाही में 30 फीसदी की गिरावट आई थी.
कोविड महामारी के बाद से एमएफआई अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे. खासतौर पर ब्याज दरों की सीमा हटाए जाने और बैंकों से आसान वित्तपोषण जैसे तालमेल के दिशा-निर्देशों से एमएफआई को काफी मदद मिली. इस वजह से यूपी और बिहार में बीते 3-4 साल के दौरान छोटे कर्ज के वितरण में खासी वृद्धि हुई है. वित्तवर्ष 2022 से 2024 के दौरान, यूपी और बिहार में क्रमशः 35.7 और 30.5 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि पूरे देश में एमएफआई बाजार की औसत वृद्धि 18.1 फीसदी रही है. यूपी-बिहार के अलावा इस दौरान तमिलनाडु में 21 फीसदी की वृद्धि हुई.
रिपोर्ट में कहा गया है, एमएफआई को कई वजहों से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इनमें देशभर में गर्मी की स्थिति, आम चुनाव और क्षेत्रीय स्तर पर हुई छंटनी शामिल हैं. इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में ओवरलेवरेजिंग यानी चुकाने की क्षमता से ज्यादा कर्ज चिंता का विषय बना हुआ है, जिससे एमएफआई को कर्ज बांटने के अपने रवैये में सुधार के लिए मजबूर होना पड़ा है. हालांकि, सुधारों के नतीजे मिलने में एक या दो तिमाही का वक्त लग सकता है.
माइक्रो फाइनेंस इंडस्ट्री ने फंसे कर्ज को कम करने और नए कर्ज को फंसने से बचाने के लिए कुछ नए दिशा-निर्देश तय किए हैं. खासतौर पर कर्ज देते समय अब इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि कर्ज लेने वाला अपनी व्यावसायिक गतिविधियों के लिए किस हद तक कर्ज पर निर्भर है और अगर उसने चार से ज्यादा कर्जदाताओं से कर्ज ले रखा है, तो माना जाएगा कि उसको दिया गया कर्ज फंस सकता है.
बंगाल, बिहार, यूपी, महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे राज्यों में कम वेतन वृद्धि की वजह से फंसे हुए कर्ज के मामले बढ़ रहे हैं. वहीं, केरल और तमिलनाडु में पर्याप्त वेतन वृद्धि के बाद भी प्रति उधारकर्ता ज्यादा औसत कर्ज बकाया है. इसके अलावा बंगाल में ओवरलेवरेजिंग की समस्या सबसे ज्यादा है, जिसकी वजह से यहां एमएफआई ने कर्ज बांटने में कमी की है.